बुंदेलखंड
(bundelkhand) के लोककवि घाघ ने कहा था, 'अपने करे नसैनी, दैवइ दोषन
देय' यानी खुद ही अपनी बर्बादी का इंतजाम करो और बाद में किस्मत को दोष
दे दो। हरियाली और पानी को तरसते बुंदेलखंड (bundelkhand)
पर ये पंक्तियां एकदम सटीक साबित होती हैं। जिस धरती की कोख से लगभग
40,000 कैरेट हीरा निकाला जा चुका है और 14,00,000 कैरेट हीरे का भंडार
मौजूद है, वह धरती आज बंजर होती जा रही है तो इसके लिए प्रकृति कम और
इंसानी कुप्रबंधन ज्यादा जिम्मेदार है। मेंथा के कारण
क्षेत्र की सर्वाधिक उपजाऊ बेल्ट जालौन, उरई और झाँसी (Jhansi)आज बंजर होने
के कगार पर हैं। इस इलाके की जीवन रेखा यहां के तालाब थे लेकिन आज
अधिकांश तालाब सूख गए हैं। महोबा के मदन सागर, कीरत सागर, कल्याण सागर,
विजय सागर और सलालपुर तालाब के बड़े हिस्से पर स्थानीय लोगों ने कब्जा
जमा लिया है। बात चाहे कजरी की हो या आल्हा की। बुंदेलखंड (bundelkhand)
के उत्सवों और लोक-परंपराओं का पानी के साथ गहरा नाता रहा है। लेकिन ये
परंपराएं क्या टूटीं, प्रकृति ही रूठ गई। महोबा के सामाजिक कार्यकर्ता
राजेश सिंह का कहना है कि समस्याओं का समाधान इन्हीं लोक-परंपराओं में
मिल सकता है और अगर परंपराएं नहीं रहीं तो कोई भी पैकेज बुंदेलखंड
(bundelkhand) को नहीं बचा पाएगा। ऐसे में बुंदेलखंड (bundelkhand) में
हीरा तो मिलेगा लेकिन पानी नहीं और रहीमदास कह गए हैं कि बिन पानी सब
सून।
बुंदेलखंड (bundelkhand)
में पानी और फसल के लिए तरस रहे हैं किसान ग्रेनाइट पत्थर की कटाई से
निकली धूल ने खेतों को बना दिया बंजर खनन के लिए जंगलों को काटा गया और
बारिश गई रूठ कम बारिश की वजह से तालाब सूखे, भूजल स्तर गिर गया
बुंदेलखंड (bundelkhand) के तालाबो और पानी की व्यवस्था के लिए राज्य
सरकार ने करोडों रूपए लगाये हैं लकिन उनका नतीजा कुछ भी नहीं मिला है जिसका
एक मात्र कारन है की वो पैसा उन योजनाओ पर पूरी तरह से खर्च ही नहीं हुआ
अगर सरकार बुंदेलखंड (bundelkhand) मैं पानी की समस्या का निराकरण
चाहती है तो सरकार को चाहिए की जो तालाब कुंए वावरी जो की पहले बनवाए जा
चुके है उनका केबल जीर्णोद्धार करवा करके भी यहाँ की पानी की समस्या को
सुलझाया जा सकता है क्योंकि जो तालाब बुंदेलखंड (bundelkhand) मैं बनाये
बनाये गए हैं उनकी भोतिक बनावट कुछ इस तरह की है की एक तालाब मैं पानी
भर जाने के बाद उसके निकासी से दुसरे तालाब मैं ही उसका पानी जाता है
इसलिए यदि राज्य सरकार उन समस्त जल संसाधनों का जीर्णोद्धार करवा के
भुन्देल्खंड से पानी की समस्या को पूर्ण रूप से कतम करवा सकती है चंदेलों
ने बुंदेलखंड (bundelkhand) क्षेत्र को एक विकसित क्षेत्र के रूप में
पहचान दी थी। उन्होने बुंदेलखंड (bundelkhand) क्षेत्र में चंदेली
तालाबों का निर्माण कराकर उनके किनारों पर बस्तिया बसाकर बुंदेलखंड
(bundelkhand) क्षेत्र को कृषि के क्षेत्र में अग्रसर किया था। उस समय
धान, गन्ना, वनोजप और धी को पैदावार खूब होती थी। चंदेरी का एक पानुसाह
सेठ अपने टाढे लेकर इस क्षेत्र में व्यापार करने आते थे तभी से जैन
व्यवसायी भी इस क्षेत्र में भाये, क्षेत्र में गुड खूब बनाया जाता था।
गन्ने की पिराई वाले पत्थर के काल आज भी गांव–गांव में जाने जाते है।
चंदेल राजाओं ने मंदिर स्थापत्य कला, मूर्ति स्थापत्य कला,
तालाब स्थापत्य कला पर काफी जोर दिया था। गांव–गांव के चंदेली तालाब और
खजुराहों के विश्व प्रसिद्ध मंदिर एवं अजयगढ़ के महल चंदेल काल की कला के
सर्वोच्च नमूने है जो विश्वप्रसिद्ध है।
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