ग़रीबी और पलायन
उन्होंने याद दिलाया
कि 1948 में बुंदेलखंड (bundelkhand) और बघेलखंड के 35 राजाओं ने अपनी
रियासतों को भारत सरकार को सौंपने से पहले एक संधि पर दस्तख़त किए थे जिसमे
अलग बुंदेलखंड (bundelkhand) राज्य बनाने का वादा किया गया था!
हमें योजनाएँ परियोजनाएँ नही बल्कि अपने विकास के लिए अपना राज्य चाहिए! "राजा बुंदेला"
बुंदेला
ने बुंदेलखंड (bundelkhand) की ग़रीबी और पलायन का जिक्र किया और कहा, "
हमें योजनाएं परियोजनाएं नही बल्कि अपने विकास के लिए अपना राज्य चाहिए."
उनका
दावा है कि अलग बुंदेलखंड (bundelkhand) राज्य में आर्थिक संसाधनों की
कमी नही होगी, क्योंकि वहां कई प्रकार के खनिज पाए जाते हैं.
बुंदेला इस सवाल पर झुंझला गए कि बुंदेलखंड (bundelkhand) में अलग राज्य की मांग को आम जनता का समर्थन अभी तक दिखाई नही पड़ा है.
उन्होंने
कहा कि अगर मुख्यमंत्री मायावती अपनी बात पर गंभीर हैं तो उन्हें अलग
राज्य के लिए विधानसभा में प्रस्ताव पास करना चाहिए, हालांकि क़ानूनी तौर
पर यह अनिवार्य नही है.
बुंदेला कांग्रेस के समर्थक माने जाते हैं. लेकिन उनका कहना है कि उनका आंदोलन किसी दल से प्रेरित नही है.
पिछड़ापन :– बुंदेलखंड (bundelkhand) क्षेत्र जो विस्तृत भूभाग में फैला हुआ भूभाग है इसकी प्राकृति सीमा (इतसिंध उतसतना, इतिनर्मदा–उतयमुना)
अर्थात्
पश्चिम में सिंधु नदी से पूर्व में सतना नदी एवं उत्तर में यमुना नदी से
दक्षिण में सतना नदी एवं उत्तर में यमुना नदी से दक्षिण में नर्मदा नदी के
मध्य फैला हुआ भूभाग है।
जो विध्यांचल का भूभाग है इस भाग में विश्यांचल पर्वत की श्रेणियाँ, पहाडियां फैली हुई है।
इसे प्राचीन काल में विन्ध्येला कहा जाता था जो कालांतर में बुन्देला और विन्ध्येलखंड से बुंदेलखंड (bundelkhand) बन गया था।
बुंदेलखंड (bundelkhand) को दे भागों में विभाजित किया जा सकता है।
प्रथम
उत्तरी बुंदेलखंड (bundelkhand) जो वेतवा नदी के उत्तर में पडता है।
इसमें जालौन, हमीरपुर, महोवा, बांदा, चित्रकूट आदि जिले है।
इस उत्तरी
बुंदेलखंड (bundelkhand) में महोवा, बांदा के पाठाा क्षेत्र को छोड़कर
अधिकांशत: समतल भूमि है। यह कछारी नदियों का कछारीय क्षेत्र है।
जिसमें बिना पानी के भी फसलें हो जाया करती रही है। दूसरा भाग दक्षिणी पूवी बुंदेलखंड (bundelkhand) है।
जो पहाड़ी टौरियाऊ, पठारी, ढालू, जंगली, रांकड, पथरीला भूभाग है। इस क्षेत्र की नदियाँ सूखी पहाड़ी, पठारी है।
जिनमें पानी केवल वर्षा ऋतु में रहता है व गर्मियों मे सूखी रहती है। लोगों को सदैव अकाल झेलना पड़ा रहा है।
इस भूभाग में पन्ना, छतरपुर (chhatarpur) , टीकमगढ़(tikamgarh) ललितपुर (lalitpur) , झाांसी, शिवपुरी, सागर, दमोह आदि जिले है।
पानी के अभाव में यहाँ कृषि अविकसित पिछडी रही है।
इस
पहाडी रांकड पथरीली भूमि में प्राचीन काल से वर्षा ऋतु में बोयी जाने वाली
खरीफ के फसल के मोटे अनाजों (ज्वार, कोदों, धान, कुटकी, राली, लठारा, समा,
उर्दा एवं तिल) की फसलें ही पैदा होती रही है। इन्ही फसलों के द्वारा लोग
अपना जीवन गुजारते रहे है। जंगली पहाड़ी भूमि होने से लोग पशुपाल भी करते
थे।
बनोपज पर भी लोग निर्भर रहा करते थे। आदिवासी गाद, कंदा, लाख, पेड़ों से निकालकर बेचकर गुजर करते थे।
रवि की फसल बहुत कम मात्रा में पैदा की जाती थी क्योंकि कृषि भूमि की सिंचाई के लिए जल नही था।
जो
चंदेली तालाब गांवों में थे, उनमें वर्षातीय, धरातलीय जल संग्रह कर ग्राम
के लोग अपने दैनिक विस्तार में एवं पशुओं के पीने के उपयोग में लाया करते
थे। चंदेली तालाबों में पानी निकालने का कोई साधन (औनों, सलूस) आदि नही हुआ
करते थे।
बरसाती अतिरिक्त पानी यदि तालाब में आ जाता था तो वह तालाबों
की दोनों ओरे से पाखियों, उबेलों से पीछे लातब से बाहद निकल जाया करता रहा
है।
तालाब के बांध के पीछे जहाँ पानी हमेशा बहता रहता है उसे बहारू क्षेत्र बोलते है।
जिसमें
धान और गन्ना की फसलें पैदा की जाती रही है। जबकि उबेलाओं का पानी बहारू
क्षेत्र के ऊपरी भागों के टरेटों से होकर जाया करता था।
जिस कारनण टरेटों की फसलों की सिंचाई का पानी कम ही मिलता था।
ऐसी
स्थिति में टरेटों में जौ की फसल ही हो पाती थी कुओं या जहाँ कही चाट
(डौली, पनारी) से पानी निकालने की सुविधा बन पडती वहाँ थेडी बहुत गेहू की
फसल हो जाती है।
तात्पर्य है कि बुंदेलखंड (bundelkhand) कृषि के क्षेत्र में प्राचीन से ही पिछड़ा रहा है।
वृक्ष
भी अच्छे फलदार नही रहे है। चूंकि यह शुष्क भूमि वाल क्षेत्र है ऐसी शुष्क
भूमि के पेड़ों में जो फल लगते है रसदार, गदेदार कम गुठलीदासर ज्यादा होते
है। जो स्वास्थ्यवर्धक भी नही है। इस प्रकार फलों के क्षेत्र में भी हम
पिछड़े है।
पशु भैंस, गाय, बकरी, गाडर (भेड़) भी दुधारू नहीं है क्योंकि पहाड़ी, टौरयाऊ, पथरीली भूमि में धास की कमी सदैव बनी रहती है।
पशुधन
भी लाभकारी नहीं रहा है। खनिज संपदा का कभी दोहन ही नहीं हुआ। बुंदेलखंड
(bundelkhand) में भूमि को पुराने लकड़ी के हलों द्वारा भूमि की गुडाई सी
जुताई कर खेती की जाती रही है।
पथरीली जमीन होने के कारण गहरी जुताई
नहीं हो पाती। जिससे पैदावार कम होती रही है। धरती के अंदर बहुमूल्य खनिज
संपदा है परंतु वह प्राचीनकाल से अविकसित रही है।
खनिज संपदा का दोहन नहीं किया गया। जिस कारण लोगों की आर्थिक स्थिति अत्यंत खराब रही है। मजदूरों के लिए काम भी यहाँ पर नहीं है।
रोटी, पानी व रोजी का अभाव है जिस कारण लोग रोजी रोटी के लिए दूसरे क्षेत्रों में भटकते रहे है।
शिक्षा
पिछड़ेपन और अन्य सारे पिछडेपन के लिए एक रामवाण औषधी मानी जाती है तो
युगानुरूप धरती के अनुरूप और लोगों की आर्थिक स्थिति के अनुरूप शिक्षा की
अच्छी व्यवस्था कभी नही रही है।
तात्पर्य है कि बुंदेलखंड (bundelkhand) के लोग श्रम करने के बाद भी रोटी नही पा पाते खेती की भूमि सीमांतक है
जिस कारण भूखे अधपेट लोग भाग्य के भरोसे अथवा ईश्वर के भरोसे जीवन काटने को मजबूर रहे है।
गोस्वामी तुलसीदास ने अपनी कवितावली में कहा था –
"खेती न किसान को, भिखारी को न भीखवाल।
बनिक को न बनिज, न चाकर को चाकरी।।
जीविकाविहीन लोग, सीध मान्स सोचबस।
कहैं एक एकन सौं, कहाँ जाएं का करि।।"
इसलिए हम प्राचीन काल से ही हर क्षेत्र में पिछड़े रहे है और हमेशा हम परमात्मा का मुँह देखते रहे है।
अथवा सेठ साहूकारों के ऋणी रहे है और रोजी रोटी की तालश में दूसरे क्षेत्रों में भटकते रहे है।
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