Tuesday 4 February 2014

बुंदेलखंड (bundelkhand) के गुफा

बुंदेलखंड (bundelkhand) के गुफा चित्र :– बुंदेलखंड (bundelkhand) प्राचीन काल से ही पहाड़ी, पठारी, वनांचलीय भू–भाग रहा है, पहाड़ों की तलहटी से अथवा पहाड़ों की तराईयों से अथवा दो पहाडों के मध्य से यहां नदियां प्रवाहित रही है। पहाड़ी नदियों नालों के किनारे प्राचीन काल से ही आदिमानव रहता रहा है। जिसका निवास पहाड़ी गुफाओं (कंदराओं) में तोता था। पहाड़ी गुफाओं में रहना और पत्थर के औजारों से वन्य पशुओं के मांस पर जीवन चलाना, आदिमानव की नियति थी। नग्न रहता था और हिंसक पशुओं की तरह गुफाओं में जीवन व्यतीत करता था, वन्य पशुओं को मारकर गुफाओं में लग्न और उन्हें चींथकर खाना आदिमानव की प्रारंभिक मनोदशा थी।
जिस गुफा में रहना उसकी दीवालों में पत्थरों पर पशुओं की आकृति का चित्रांकन कर अपनी भावनाओं को प्रदर्शित किया। ऐसे आदिमानव के बनाये गुफाचित्र बुंदेलखंड (bundelkhand) क्षेत्र के पहाड़ी गुफाओं में आज भी सुरक्षित है, जिन्हें यदि पर्यटक चाहे तो उन्हें देख सकते है। ऐसी गुफाओं में कुछ आवचंद की गुफाएं है, जो सागर गडाकोटा मार्ग पर सुनार और गंधेरी नदी के संगम के पास आवचंद ग्राम के पहाड़ों की गुफाओं में प्राप्त भित्ति चित्र है। यह पत्थरों पर आज भी लाल और कत्थई कालें रंगों में दृष्टव्य है। गुफाओं में लकीरों के रूप में मानव आकृतियां निर्मित है, तो हिरण, मोर और शेरों की आकृतियां है।
सागर–बीना मार्ग से संलग्न खानपुर की पहाड़ी गुफा में भी लाल और गेरू रंग की पुतलियां है। छतरपुर (chhatarpur) जिला के देवरा के पहाड़ी गुफा में लाल रंग की तितलियां है। जिन्हें स्थानीय लोग पोरकादाता और पुतली का दाता नाम से पुकारते है। देवरा बिजावर किशनगढ़ मार्ग पर स्थित है। देवरा के पास के पहाड़ी नाले में यह गुफा खुलती है। बिजावर तहसील में ही पिपरिया गांव की सेहों घाटी की पहाड़ी में गुफाएं है। जो एक नाले से संलग्न है। इन गुफाओं में लाल रंग का आदमी हिरण जैसे आकृतियों की पुतलियां बनी हुई है। बुंदेलखंड (bundelkhand) क्षेत्र के बांदा और अन्य क्षेत्र के पहाड़ी गुफाओं में ऐसी पुतलियां मिलती है, जिन्हें स्थानीय आदिवासी रकत (खून) की लाल पुतलिया कहते है। Bhimbetka
भीमबेटका पाषाण आश्रय
भीमबेटका (भीमबैठका) भारत के मध्य प्रदेश प्रान्त के रायसेन जिले में स्थित एक पुरापाषाणिक आवासीय पुरास्थल है। यह आदि-मानव द्वारा बनाये गए शैल चित्रों और शैलाश्रयों के लिए प्रसिद्ध है। ये शैलचित्र लगभग नौ हजार वर्ष पुराने हैं। अन्य पुरावशेषों में प्राचीन किले की दीवार, लघुस्तूप, पाषाण निर्मित भवन, शुंग-गुप्त कालीन अभिलेख, शंख अभिलेख और परमार कालीन मंदिर के अवशेष भी यहां मिले हैं। भीम बेटका क्षेत्र को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, भोपाल मंडल ने अगस्त १९९० में राष्ट्रीय महत्त्व का स्थल घोषित किया। इसके बाद जुलाई २००३ में यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर स्थल घोषित किया है।
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ये भारत में मानव जीवन के प्राचीनतम चिह्न हैं। ऐसा माना जाता है कि यह स्थान महाभारत के चरित्र भीम से संबन्धित है एवं इसी से इसका नाम भीमबैठका पड़ा। ये गुफाएँ मध्य भारत के पठार के दक्षिणी किनारे पर स्थित विन्ध्याचल की पहाड़ियों के निचले छोर पर हैं।इसके दक्षिण में सतपुड़ा की पहाड़ियाँ आरम्भ हो जाती हैं। इनकी खोज वर्ष १९५७-१९५८ में डाक्टर विष्णु श्रीधर वाकणकर द्वारा की गई थी। शैलकला एवं शैलचित्र

भीमबैठका शैलचित्रयहाँ ७५० शैलाश्रय हैं जिनमें ५०० शैलाश्रय चित्रों द्वारा सज्जित हैं। पूर्व पाषाण काल से मध्य ऐतिहासिक काल तक यह स्थान मानव गतिविधियों का केंद्र रहा। यह बहुमूल्य धरोहर अब पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है। भीम बैठका क्षेत्र में प्रवेश करते हुए शिलाओं पर लिखी कई जानकारियां मिलती हैं। यहां के शैल चित्रों के विषय मुख्यतया सामूहिक नृत्य, रेखांकित मानवाकृति, शिकार, पशु-पक्षी, युद्ध और प्राचीन मानव जीवन के दैनिक क्रियाकलापों से जुड़े हैं। चित्रों में प्रयोग किए गए खनिज रंगों में मुख्य रूप से गेरुआ, लाल और सफेद हैं और कहीं-कहीं पीला और हरा रंग भी प्रयोग हुआ है।

शैलाश्रयों की अंदरूनी सतहों में उत्कीर्ण प्यालेनुमा निशान एक लाख वर्ष पुराने हैं। इन कृतियों में दैनिक जीवन की घटनाओं से लिए गए विषय चित्रित हैं। ये हज़ारों वर्ष पहले का जीवन दर्शाते हैं। यहाँ बनाए गए चित्र मुख्यतः नृत्य, संगीत, आखेट, घोड़ों और हाथियों की सवारी, आभूषणों को सजाने तथा शहद जमा करने के बारे में हैं। इनके अलावा बाघ, सिंह, जंगली सुअर, हाथियों, कुत्तों और घडियालों जैसे जानवरों को भी इन तस्वीरों में चित्रित किया गया है। यहाँ की दीवारें धार्मिक संकेतों से सजी हुई है, जो पूर्व ऐतिहासिक कलाकारों के बीच लोकप्रिय थे।इस प्रकार भीम बैठका के प्राचीन मानव के संज्ञानात्मक विकास का कालक्रम विश्व के अन्य प्राचीन समानांतर स्थलों से हजारों वर्ष पूर्व हुआ था। इस प्रकार से यह स्थल मानव विकास का आरंभिक स्थान भी माना जा सकता है। निकटवर्ती पुरातात्विक स्थल

भीमबेटका के शैलचित्रइस प्रकार के प्रागैतिहासिक शैलचित्र रायगढ़ जिले के सिंघनपुर के निकट कबरा पहाड़ की गुफाओं में, होशंगाबाद के निकट आदमगढ़ में, छतरपुर (chhatarpur) जिले के बिजावर के निकटस्थ पहाडियों पर तथा रायसेन जिले में बरेली तहसील के पाटनी गाँव में मृगेंद्रनाथ की गुफा के शैलचित्र एवं भोपाल-रायसेन मार्ग पर भोपाल के निकट पहाडियों पर (चिडिया टोल) में भी मिले हैं। हाल में ही होशंगाबाद के पास बुधनी की एक पत्थर खदान में भी शैल चित्र पाए गए हैं। भीमबेटका से ५ किलोमीटर की दूरी पर पेंगावन में ३५ शैलाश्रय पाए गए है ये शैल चित्र अति दुर्लभ माने गए हैं। इन सभी शैलचित्रों की प्राचीनता १०,००० से ३५,००० वर्ष की आंकी गयी है।

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